लेखनी कविता - दरिंदा - भवानीप्रसाद मिश्र

58 Part

31 times read

0 Liked

दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र दरिंदा आदमी की आवाज़ में बोला स्वागत में मैंने अपना दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा खोलते ही समझा कि देर हो गई मानवता थोड़ी बहुत जितनी भी थी ...

Chapter

×